भारत की प्रमुख नदियां (भारतीय अपवाह तंत्र)

 1. हिमालय की नदियां

                     हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियों की मुख्य विशेषता है कि इनमें वर्षभर पानी रहता है। इस चित्र की नदियों को वर्षा के जल के अतिरिक्त ऊंचे पर्वतों के एम के पिघलने से इनमें जल आपूर्ति होती रहती है। पर्वतीय भागों से आने के कारण यह नदियां गहरी घाटियां, गार्ज व झरने बनाती है
अपनी प्रौंढ़ अवस्था के साथ-साथ मैदानी भागों में जमाव करती हैं। मध्य एवं निचले भागों में ये नदियां विसर्प, गोखुर झील तथा बाढ़ वाले मैदान का निर्माण करती हैं। हिमालय से तीन बड़ी नदियां निकलती हैं।

सिंधु नदी तंत्र

                      इस तंत्र में सिंधु और उसकी सहायक नदियों को सम्मिलित किया जाता है। सिंधु नदी की कुल लंबाई लगभग 2900 किलोमीटर है। सिंधु नदी तिब्बत के मानसरोवर के पास से निकलकर पश्चिम की ओर बहती हुई जम्मू और कश्मीर के लद्दाख जिले में 500 मीटर ऊंचा एक सुंदर दर्शनीय गार्ज बनाती हुई बहती है। यहां से यह दक्षिण पश्चिम में बहती हुई पाकिस्तान में प्रवेश कर अंत में अरब सागर में मिल जाती है। सिंधु की 5 सहायक नदियां झेलम, चिनाब,रावि,व्यास और सतलज पांच नदियों के इस प्रदेश को पंजाब कहते हैं। जल प्रवाह की मात्रा वर्ष भर एक समान नहीं रहती। इसके जल का उपयोग हम पंजाब हरियाणा एवं राजस्थान के दक्षिण पश्चिम भागों में सिंचाई के लिए करते हैं।

गंगा नदी तंत्र

                    गंगा नदी की लंबाई 2500 किलोमीटर से अधिक है। यह गंगोत्री हिमानी से निकलती है। हरिद्वार के पास गंगा पर्वतीय भाग क छोड़कर मैदानी भाग में प्रवेश करती है। इसकी सहायक नदियां यमुना, घाघरा, गंडक और कोसी प्रमुख हैं।
 यह नदियां उपजाऊ बाढ़ का मैदान बनाती हैं। इनमें नदी मोड़ तथा गोखुर झीलें पाई जाती हैं। अंबाला के निकट जल विभाजक द्वारा गंगा एवं सिंधु नदी के प्रवाह क्षेत्र का विभाजन होता है।
           प्रायद्वीपीय भारत के कठोर भूमि से बहकर आने वाली चंबल, केन, बेतवा, सोन और दामोदर नदियां भी गंगा प्रणाली का अंग है। इन पर बड़े-बड़े बांध बनाए गए हैं जिनसे जलविद्युत और सिंचाई की जाती है। दक्षिण की ओर बहती हुई गंगा डेल्टा बनाते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। गंगा की मुख्यधारा बांग्लादेश में प्रवेश कर जाती है एवं ब्रह्मपुत्र नदी से मिलने के बाद इसे मेघना कहते हैं।

ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र

                         कैलाश पर्वत एवं मानसरोवर झील के निकट इसका उद्गम है। हिमालय पर्वत के समांतर प्रवाहित होती हुई यह अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। भारत में इसका प्रभाव 1400 किलोमीटर है। इसकी सहायक नदियां दिबांग लोहित, धनश्री,  कालांग आदि हैं। अधिक वर्षा के क्षेत्र में बहने के कारण इस में अवसाद अधिक होते हैं जिनके जवाब से प्रतिवर्ष बाढ़ आती है। नदियों का प्रभाव बदलता रहता है । नदी दीपों का भी निर्माण होता है। तिब्बत में इसे सॉन्गपों भारत में ब्रह्मपुत्र एवं बांग्लादेश में पदमा और मेघना नाम से जाना जाता है। यह बहती हुई विशाल डेल्टा का निर्माण करती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।


टिप्पणियाँ